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ग्रामीण परिवेश

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_मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,_ _आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।_ _लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,_ _मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।_ _छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,_ _जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।_ _मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,_ _छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।_ _कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,_ _क्योंकि आखिरी ठिकाना मेरा मिटटी का घर अपना जानता हूँ।_ _बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ,_ _आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हूँ!!_ ======================================== आचार्य चाणक्य जी की नीतियाँ-- www.facebook.com/chaanakyaneeti वेबसाइट www.vaidiksanskritk.com www.shishusanskritam.com संस्कृत नौकरियों के लिए--- www.facebook.com/sanskritnaukari आयुर्वेद और हमारा जीवनः-- www.facebook.com/aayurvedjeevan चाणक्य-नीति पढें--- www.facebook.com/chaanakyaneeti वैदिक साहित्य की जानकारी प्राप्त करें--- www.facebook.com/vaidiksanskrit www.facebook.com/shabdanu लौकिक साहित्य पढें--- www.facebook.com/laukiksansk